ज़माना अक़्ल को समझा हुआ है मिशअल-ए-राह
किसे ख़बर कि जुनूँ भी है साहिब-ए-इदराक
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दुनिया की महफ़िलों से उकता गया हूँ या रब
हुए मदफ़ून-ए-दरिया ज़ेर-ए-दरिया तैरने वाले
परेशाँ कारोबार-ए-आश्नाई
तराना-ए-मिल्ली
बाग़-ए-बहिश्त से मुझे हुक्म-ए-सफ़र दिया था क्यूँ
दिल सोज़ से ख़ाली है निगह पाक नहीं है
वो मेरा रौनक़-ए-महफ़िल कहाँ है
ज़मीर-ए-लाला मय-ए-लाल से हुआ लबरेज़
ज़लाम-ए-बहर में खो कर सँभल जा
रूह-ए-अर्ज़ी आदम का इस्तिक़बाल करती है
फ़क़्र के हैं मोजज़ात ताज ओ सरीर ओ सिपाह