यूँ तो सय्यद भी हो मिर्ज़ा भी हो अफ़्ग़ान भी हो
तुम सभी कुछ हो बताओ मुसलमान भी हो
Parveen Shakir
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न हो तुग़्यान-ए-मुश्ताक़ी तो मैं रहता नहीं बाक़ी
इश्क़ तिरी इंतिहा इश्क़ मिरी इंतिहा
ये दैर-ए-कुहन क्या है अम्बार-ए-ख़स-ओ-ख़ाशाक
हिमाला
रहा न हल्क़ा-ए-सूफ़ी में सोज़-ए-मुश्ताक़ी
वालिदा मरहूमा की याद में
दुनिया की महफ़िलों से उकता गया हूँ या रब
यक़ीं मिस्ल-ए-ख़लील आतिश-नशीनी
रोज़-ए-हिसाब जब मिरा पेश हो दफ़्तर-ए-अमल
ख़ुदी के ज़ोर से दुनिया पे छा जा
ज़िंदगानी की हक़ीक़त कोहकन के दिल से पूछ
इल्तिजा-ए-मुसाफ़िर