ये काएनात अभी ना-तमाम है शायद
कि आ रही है दमादम सदा-ए-कुन-फ़यकूँ
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कभी आवारा ओ बे-ख़ानुमाँ इश्क़
साक़ी-नामा
तेरा इमाम बे-हुज़ूर तेरी नमाज़ बे-सुरूर
माँ का ख़्वाब
औरत
ये नुक्ता मैं ने सीखा बुल-हसन से
पास था नाकामी-ए-सय्याद का ऐ हम-सफ़ीर
हर शय मुसाफ़िर हर चीज़ राही
माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं
समा सकता नहीं पहना-ए-फ़ितरत में मिरा सौदा
नशा पिला के गिराना तो सब को आता है
ख़ुदी की जल्वतों में मुस्तफ़ाई