ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को
कि मैं आप का सामना चाहता हूँ
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मिरे जुनूँ ने ज़माने को ख़ूब पहचाना
तू है मुहीत-ए-बे-कराँ मैं हूँ ज़रा सी आबजू
नशा पिला के गिराना तो सब को आता है
सौदा-गरी नहीं ये इबादत ख़ुदा की है
जिब्रईल ओ इबलीस
कोई देखे तो मेरी नय-नवाज़ी
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा
फ़रमान-ए-ख़ुदा
मिरी नवा से हुए ज़िंदा आरिफ़ ओ आमी
ऐ ताइर-ए-लाहूती उस रिज़्क़ से मौत अच्छी
ख़ुदी हो इल्म से मोहकम तो ग़ैरत-ए-जिब्रील
अनोखी वज़्अ' है सारे ज़माने से निराले हैं