तू ने ये क्या ग़ज़ब किया मुझ को भी फ़ाश कर दिया
मैं ही तो एक राज़ था सीना-ए-काएनात में
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मुझे रोकेगा तू ऐ नाख़ुदा क्या ग़र्क़ होने से
पास था नाकामी-ए-सय्याद का ऐ हम-सफ़ीर
उमीद-ए-हूर ने सब कुछ सिखा रक्खा है वाइज़ को
परेशाँ हो के मेरी ख़ाक आख़िर दिल न बन जाए
ज़ौक़ ओ शौक़
मता-ए-बे-बहा है दर्द-ओ-सोज़-ए-आरज़ूमंदी
निगाह-ए-फ़क़्र में शान-ए-सिकंदरी क्या है
अपनी जौलाँ-गाह ज़ेर-ए-आसमाँ समझा था मैं
उसे सुब्ह-ए-अज़ल इंकार की जुरअत हुई क्यूँकर
अमीन-ए-राज़ है मर्दान-ए-हूर की दरवेशी
जिब्रईल ओ इबलीस
साक़ी-नामा