तिरे आज़ाद बंदों की न ये दुनिया न वो दुनिया
यहाँ मरने की पाबंदी वहाँ जीने की पाबंदी
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नाला है बुलबुल-ए-शोरीदा तिरा ख़ाम अभी
अनोखी वज़्अ' है सारे ज़माने से निराले हैं
हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है
यक़ीं मिस्ल-ए-ख़लील आतिश-नशीनी
न पूछो मुझ से लज़्ज़त ख़ानमाँ-बर्बाद रहने की
इसी ख़ता से इताब-ए-मुलूक है मुझ पर
गेसू-ए-ताबदार को और भी ताबदार कर
यक़ीं मोहकम अमल पैहम मोहब्बत फ़ातेह-ए-आलम
ख़िर्द-मंदों से क्या पूछूँ कि मेरी इब्तिदा क्या है
ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले
फ़क़त निगाह से होता है फ़ैसला दिल का
मकानी हूँ कि आज़ाद-ए-मकाँ हूँ