सौ सौ उमीदें बंधती है इक इक निगाह पर
मुझ को न ऐसे प्यार से देखा करे कोई
Jaun Eliya
Javed Akhtar
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Mir Taqi Mir
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ख़ुदी के ज़ोर से दुनिया पे छा जा
ने मोहरा बाक़ी ने मोहरा-बाज़ी
ज़माना अक़्ल को समझा हुआ है मिशअल-ए-राह
कोई देखे तो मेरी नय-नवाज़ी
ख़ुदी की जल्वतों में मुस्तफ़ाई
अफ़्लाक से आता है नालों का जवाब आख़िर
ख़ुदी वो बहर है जिस का कोई किनारा नहीं
तू ऐ असीर-ए-मकाँ ला-मकाँ से दूर नहीं
गुज़र जा अक़्ल से आगे कि ये नूर
मन की दौलत हाथ आती है तो फिर जाती नहीं
राम
फ़क़्र के हैं मोजज़ात ताज ओ सरीर ओ सिपाह