ख़ुदी की ख़ल्वतों में गुम रहा मैं
ख़ुदा के सामने गोया न था मैं!
न देखा आँख उठा कर जल्वा-ए-दोस्त
क़यामत में तमाशा बन गया मैं!
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बे-ख़तर कूद पड़ा आतिश-ए-नमरूद में इश्क़
जब इश्क़ सिखाता है आदाब-ए-ख़ुद-आगाही
दुनिया की महफ़िलों से उकता गया हूँ या रब
मेरी नवा-ए-शौक़ से शोर हरीम-ए-ज़ात में
समा सकता नहीं पहना-ए-फ़ितरत में मिरा सौदा
गुलज़ार-ए-हस्त-ओ-बूद न बेगाना-वार देख
परिंदे की फ़रियाद
ताज़ा फिर दानिश-ए-हाज़िर ने किया सेहर-ए-क़ादिम
वालिदा मरहूमा की याद में
तिरा अंदेशा अफ़्लाकी नहीं है
ये दैर-ए-कुहन क्या है अम्बार-ए-ख़स-ओ-ख़ाशाक
न पूछो मुझ से लज़्ज़त ख़ानमाँ-बर्बाद रहने की