निकल जा अक़्ल से आगे कि ये नूर
चराग़-ए-राह है मंज़िल नहीं है
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ये कौन ग़ज़ल-ख़्वाँ है पुर-सोज़ ओ नशात-अंगेज़
फ़ुनून-ए-लतीफ़ा
फ़क़त निगाह से होता है फ़ैसला दिल का
सबक़ मिला है ये मेराज-ए-मुस्तफ़ा से मुझे
निगह उलझी हुई रंग-ओ-बू में
मीर-ए-सिपाह ना-सज़ा लश्करियाँ शिकस्ता सफ़
लेनिन
यक़ीं मोहकम अमल पैहम मोहब्बत फ़ातेह-ए-आलम
फ़रिश्ते आदम को जन्नत से रुख़्सत करते हैं
तिरा जौहर है नूरी पाक है तू
पास था नाकामी-ए-सय्याद का ऐ हम-सफ़ीर
समा सकता नहीं पहना-ए-फ़ितरत में मिरा सौदा