मोती समझ के शान-ए-करीमी ने चुन लिए
क़तरे जो थे मिरे अरक़-ए-इंफ़िआ'ल के
Habib Jalib
Jaun Eliya
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Gulzar
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
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अबुल-अला-म'अर्री
हवा हो ऐसी कि हिन्दोस्ताँ से ऐ 'इक़बाल'
ज़मीर-ए-लाला मय-ए-लाल से हुआ लबरेज़
पूछ उस से कि मक़्बूल है फ़ितरत की गवाही
अफ़्लाक से आता है नालों का जवाब आख़िर
न हो तुग़्यान-ए-मुश्ताक़ी तो मैं रहता नहीं बाक़ी
नाला-ए-फ़िराक़
माँ का ख़्वाब
अपने मन में डूब कर पा जा सुराग़-ए-ज़ि़ंदगी
'अत्तार' हो 'रूमी' हो 'राज़ी' हो 'ग़ज़ाली' हो
ख़ुदी की ख़ल्वतों में गुम रहा मैं
यही आदम है सुल्ताँ बहर-ओ-बर का