माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं
तू मेरा शौक़ देख मिरा इंतिज़ार देख
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हैं उक़्दा-कुशा ये ख़ार-ए-सहरा
अपनी जौलाँ-गाह ज़ेर-ए-आसमाँ समझा था मैं
अपने मन में डूब कर पा जा सुराग़-ए-ज़ि़ंदगी
गोरिस्तान-ए-शाही
गेसू-ए-ताबदार को और भी ताबदार कर
न समझोगे तो मिट जाओगे ऐ हिन्दोस्ताँ वालो
ज़मिस्तानी हवा में गरचे थी शमशीर की तेज़ी
ज़लाम-ए-बहर में खो कर सँभल जा
परेशाँ हो के मेरी ख़ाक आख़िर दिल न बन जाए
सख़्तियाँ करता हूँ दिल पर ग़ैर से ग़ाफ़िल हूँ मैं
मता-ए-बे-बहा है दर्द-ओ-सोज़-ए-आरज़ूमंदी
हज़ार ख़ौफ़ हो लेकिन ज़बाँ हो दिल की रफ़ीक़