कुशादा दस्त-ए-करम जब वो बे-नियाज़ करे
नियाज़-मंद न क्यूँ आजिज़ी पे नाज़ करे
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रहा न हल्क़ा-ए-सूफ़ी में सोज़-ए-मुश्ताक़ी
ऐ ताइर-ए-लाहूती उस रिज़्क़ से मौत अच्छी
तुलू-ए-इस्लाम
मजनूँ ने शहर छोड़ा तो सहरा भी छोड़ दे
हर इक ज़र्रे में है शायद मकीं दिल
जवानों को मिरी आह-ए-सहर दे
कोई देखे तो मेरी नय-नवाज़ी
मोती समझ के शान-ए-करीमी ने चुन लिए
सख़्तियाँ करता हूँ दिल पर ग़ैर से ग़ाफ़िल हूँ मैं
मता-ए-बे-बहा है दर्द-ओ-सोज़-ए-आरज़ूमंदी
जिस खेत से दहक़ाँ को मयस्सर नहीं रोज़ी
हुए मदफ़ून-ए-दरिया ज़ेर-ए-दरिया तैरने वाले