ये महर है बे-मेहरी-ए-सय्याद का पर्दा
आई न मिरे काम मिरी ताज़ा-सफ़ीरी
रखने लगा मुरझाए हुए फूल क़फ़स में
शायद कि असीरों को गवारा हो असीरी
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ख़ुदी की शोख़ी ओ तुंदी में किब्र-ओ-नाज़ नहीं
इश्क़ तिरी इंतिहा इश्क़ मिरी इंतिहा
हया नहीं है ज़माने की आँख में बाक़ी
फ़क़त निगाह से होता है फ़ैसला दिल का
यक़ीं मोहकम अमल पैहम मोहब्बत फ़ातेह-ए-आलम
तमन्ना दर्द-ए-दिल की हो तो कर ख़िदमत फ़क़ीरों की
अनोखी वज़्अ' है सारे ज़माने से निराले हैं
मस्जिद तो बना दी शब भर में ईमाँ की हरारत वालों ने
ये है ख़ुलासा-ए-इल्म-ए-क़लंदरी कि हयात
भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी
जिस खेत से दहक़ाँ को मयस्सर नहीं रोज़ी
दम-ए-आरिफ़ नसीम-ए-सुब्ह-दम है