ख़ुदी वो बहर है जिस का कोई किनारा नहीं
तू आबजू इसे समझा अगर तो चारा नहीं
Habib Jalib
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Faiz Ahmad Faiz
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कोई देखे तो मेरी नय-नवाज़ी
इल्तिजा-ए-मुसाफ़िर
सवार-ए-नाक़ा-ओ-महमिल नहीं मैं
हिमाला
गर्म-ए-फ़ुग़ाँ है जरस उठ कि गया क़ाफ़िला
ख़ुदा तुझे किसी तूफ़ाँ से आश्ना कर दे
अच्छा है दिल के साथ रहे पासबान-ए-अक़्ल
गुलज़ार-ए-हस्त-ओ-बूद न बेगाना-वार देख
दिगर-गूँ है जहाँ तारों की गर्दिश तेज़ है साक़ी
हादसा वो जो अभी पर्दा-ए-अफ़्लाक में है
माँ का ख़्वाब
यक़ीं मोहकम अमल पैहम मोहब्बत फ़ातेह-ए-आलम