ख़ुदावंदा ये तेरे सादा-दिल बंदे किधर जाएँ
कि दरवेशी भी अय्यारी है सुल्तानी भी अय्यारी
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तमन्ना दर्द-ए-दिल की हो तो कर ख़िदमत फ़क़ीरों की
अता अस्लाफ़ का जज़्ब-ए-दरूँ कर
गेसू-ए-ताबदार को और भी ताबदार कर
नहीं है ना-उमीद 'इक़बाल' अपनी किश्त-ए-वीराँ से
पास था नाकामी-ए-सय्याद का ऐ हम-सफ़ीर
तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ
समुंदर से मिले प्यासे को शबनम
ख़ुदी की जल्वतों में मुस्तफ़ाई
इस राज़ को इक मर्द-ए-फ़रंगी ने किया फ़ाश
नशा पिला के गिराना तो सब को आता है
ख़ुदी की ख़ल्वतों में गुम रहा मैं
नाला-ए-फ़िराक़