जब इश्क़ सिखाता है आदाब-ए-ख़ुद-आगाही
खुलते हैं ग़ुलामों पर असरार-ए-शहंशाही
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परिंदे की फ़रियाद
जिन्हें मैं ढूँढता था आसमानों में ज़मीनों में
अरब के सोज़ में साज़-ए-अजम है
निगह उलझी हुई रंग-ओ-बू में
पूछ उस से कि मक़्बूल है फ़ितरत की गवाही
तिरा अंदेशा अफ़्लाकी नहीं है
तुझे याद क्या नहीं है मिरे दिल का वो ज़माना
मोहब्बत का जुनूँ बाक़ी नहीं है
उक़ाबी रूह जब बेदार होती है जवानों में
ख़ुदी के ज़ोर से दुनिया पे छा जा
अता अस्लाफ़ का जज़्ब-ए-दरूँ कर
नहीं तेरा नशेमन क़स्र-ए-सुल्तानी के गुम्बद पर