तिरी दुनिया जहान-ए-मुर्ग़-ओ-माही
मिरी दुनिया फ़ुग़ान-ए-सुब्ह-गाही
तिरी दुनिया में मैं महकूम ओ मजबूर
मिरी दुनिया में तेरी पादशाही
Wasi Shah
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
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फ़ितरत को ख़िरद के रू-ब-रू कर
हकीम ओ आरिफ़ ओ सूफ़ी तमाम मस्त-ए-ज़ुहूर
हर चीज़ है महव-ए-ख़ुद-नुमाई
हुई न आम जहाँ में कभी हुकूमत-ए-इश्क़
ज़मीर-ए-लाला मय-ए-लाल से हुआ लबरेज़
अनोखी वज़्अ' है सारे ज़माने से निराले हैं
कभी तन्हाई-ए-कोह-ओ-दमन इश्क़
हया नहीं है ज़माने की आँख में बाक़ी
नया शिवाला
तिरी निगाह फ़रोमाया हाथ है कोताह
ये काएनात अभी ना-तमाम है शायद
तिरा तन रूह से ना-आश्ना है