तमीज़-ए-ख़ार-ओ-गुल से आश्कारा
नसीम-ए-सुब्ह की रौशन-ज़मीरी
हिफ़ाज़त फूल की मुमकिन नहीं है
अगर काँटे में हो ख़ू-ए-हरीरी
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ये पयाम दे गई है मुझे बाद-ए-सुब्ह-गाही
कहा 'इक़बाल' ने शैख़-ए-हरम से
ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले
हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है
गुलज़ार-ए-हस्त-ओ-बूद न बेगाना-वार देख
ये मेहर है बे-मेहरी-ए-सय्याद का पर्दा
ये काएनात अभी ना-तमाम है शायद
निगह बुलंद सुख़न दिल-नवाज़ जाँ पुर-सोज़
रूह-ए-अर्ज़ी आदम का इस्तिक़बाल करती है
ख़ुदी की जल्वतों में मुस्तफ़ाई
ख़ुदी की शोख़ी ओ तुंदी में किब्र-ओ-नाज़ नहीं
हादसा वो जो अभी पर्दा-ए-अफ़्लाक में है