इश्क़ तिरी इंतिहा इश्क़ मिरी इंतिहा
तू भी अभी ना-तमाम मैं भी अभी ना-तमाम
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अमीन-ए-राज़ है मर्दान-ए-हूर की दरवेशी
औरत
चमन में रख़्त-ए-गुल शबनम से तर है
सख़्तियाँ करता हूँ दिल पर ग़ैर से ग़ाफ़िल हूँ मैं
हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है
एक नौ-जवान के नाम
आलम-ए-आब-ओ-ख़ाक-ओ-बाद सिर्र-ए-अयाँ है तू कि मैं
ज़िंदगानी की हक़ीक़त कोहकन के दिल से पूछ
निगह उलझी हुई रंग-ओ-बू में
फिर चराग़-ए-लाला से रौशन हुए कोह ओ दमन
दम-ए-आरिफ़ नसीम-ए-सुब्ह-दम है
ख़ुदी बुलंद थी उस ख़ूँ-गिरफ़्ता चीनी की