हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा
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करेंगे अहल-ए-नज़र ताज़ा बस्तियाँ आबाद
ज़माना अक़्ल को समझा हुआ है मिशअल-ए-राह
कभी छोड़ी हुई मंज़िल भी याद आती है राही को
अरब के सोज़ में साज़-ए-अजम है
तारिक़ की दुआ
ज़लाम-ए-बहर में खो कर सँभल जा
जिन्हें मैं ढूँढता था आसमानों में ज़मीनों में
ढूँड रहा है फ़रंग ऐश-ए-जहाँ का दवाम
गुलज़ार-ए-हस्त-ओ-बूद न बेगाना-वार देख
अता अस्लाफ़ का जज़्ब-ए-दरूँ कर
करम तेरा कि बे-जौहर नहीं मैं
फ़क़्र के हैं मोजज़ात ताज ओ सरीर ओ सिपाह