रह-ओ-रस्म-ए-हरम ना-मुहरिमाना
कलीसा की अदा सौदागराना
तबर्रुक से मिरा पैराहन-ए-चाक
नहीं अहल-ए-जुनूँ का ये ज़माना
Wasi Shah
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
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Jaun Eliya
Gulzar
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एक पहाड़ और गिलहरी
अफ़्लाक से आता है नालों का जवाब आख़िर
जिन्हें मैं ढूँढता था आसमानों में ज़मीनों में
इश्क़ से पैदा नवा-ए-ज़िंदगी में ज़ेर-ओ-बम
ये काएनात अभी ना-तमाम है शायद
नाला है बुलबुल-ए-शोरीदा तिरा ख़ाम अभी
की हक़ से फ़रिश्तों ने 'इक़बाल' की ग़म्माज़ी
इश्क़ तिरी इंतिहा इश्क़ मिरी इंतिहा
ला-इलाहा-इल्लल्लाह
ये है ख़ुलासा-ए-इल्म-ए-क़लंदरी कि हयात
सबक़ मिला है ये मेराज-ए-मुस्तफ़ा से मुझे
हर इक ज़र्रे में है शायद मकीं दिल