हैं उक़्दा-कुशा ये ख़ार-ए-सहरा
कम कर गिला-ए-बरहना-पाई
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सितारा क्या मिरी तक़दीर की ख़बर देगा
वालिदा मरहूमा की याद में
लेनिन
अजब नहीं कि ख़ुदा तक तिरी रसाई हो
मानिंद-ए-सहर सेहन-ए-गुलिस्ताँ में क़दम रख
ज़ोहद और रिंदी
ख़ुदा तुझे किसी तूफ़ाँ से आश्ना कर दे
हर शय मुसाफ़िर हर चीज़ राही
तेरा इमाम बे-हुज़ूर तेरी नमाज़ बे-सुरूर
ये है ख़ुलासा-ए-इल्म-ए-क़लंदरी कि हयात
सितारों से आगे जहाँ और भी हैं
बदल के भेस फिर आते हैं हर ज़माने में