परेशाँ कारोबार-ए-आश्नाई
परेशाँ-तर मिरी रंगीं नवाई
कभी मैं ढूँढता हूँ लज़्ज़त-ए-वस्ल
ख़ुश आता है कभी सोज़-ए-जुदाई
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तिरी दुनिया जहान-ए-मुर्ग़-ओ-माही
ख़िरद से राह-रौ रौशन-बसर है
निगाह-ए-फ़क़्र में शान-ए-सिकंदरी क्या है
बदल के भेस फिर आते हैं हर ज़माने में
न तू ज़मीं के लिए है न आसमाँ के लिए
एक नौ-जवान के नाम
जमाल-ए-इश्क़-ओ-मस्ती नय-नवाज़ी
पुराने हैं ये सितारे फ़लक भी फ़र्सूदा
तू ने ये क्या ग़ज़ब किया मुझ को भी फ़ाश कर दिया
हुए मदफ़ून-ए-दरिया ज़ेर-ए-दरिया तैरने वाले
हकीम ओ आरिफ़ ओ सूफ़ी तमाम मस्त-ए-ज़ुहूर
इस राज़ को इक मर्द-ए-फ़रंगी ने किया फ़ाश