नहीं मक़ाम की ख़ूगर तबीअत-ए-आज़ाद
हवाए-ए-सैर मिसाल-ए-नसीम पैदा कर
हज़ार चश्मा तिरे संग-ए-राह से फूटे
ख़ुदी में डूब के ज़र्ब-ए-कलीम पैदा कर
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बच्चे की दुआ
कमाल-ए-तर्क नहीं आब-ओ-गिल से महजूरी
ज़मिस्तानी हवा में गरचे थी शमशीर की तेज़ी
नाला है बुलबुल-ए-शोरीदा तिरा ख़ाम अभी
कुशादा दस्त-ए-करम जब वो बे-नियाज़ करे
अज़ाब-ए-दानिश-ए-हाज़िर से बा-ख़बर हूँ मैं
वालिदा मरहूमा की याद में
शुआ-ए-उम्मीद
मार्च 1907
फ़ितरत को ख़िरद के रू-ब-रू कर
दिल से जो बात निकलती है असर रखती है
तिरे सीने में दम है दिल नहीं है