फ़ितरत को ख़िरद के रू-ब-रू कर
तस्ख़ीर-ए-मक़ाम-ए-रंग-ओ-बू कर
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तस्वीर-ए-दर्द
गेसू-ए-ताबदार को और भी ताबदार कर
न मोमिन है न मोमिन की अमीरी
तिरी निगाह फ़रोमाया हाथ है कोताह
जवानों को मिरी आह-ए-सहर दे
कोई देखे तो मेरी नय-नवाज़ी
बदल के भेस फिर आते हैं हर ज़माने में
मैं जो सर-ब-सज्दा हुआ कभी तो ज़मीं से आने लगी सदा
कभी हम से कभी ग़ैरों से शनासाई है
या रब ये जहान-ए-गुज़राँ ख़ूब है लेकिन
निगाह-ए-इश्क़ दिल-ए-ज़िंदा की तलाश में है
मिरी नवा से हुए ज़िंदा आरिफ़ ओ आमी