दिल से जो बात निकलती है असर रखती है
पर नहीं ताक़त-ए-परवाज़ मगर रखती है
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तिरी निगाह फ़रोमाया हाथ है कोताह
तस्वीर-ए-दर्द
ख़ुदी की जल्वतों में मुस्तफ़ाई
फ़िर्क़ा-बंदी है कहीं और कहीं ज़ातें हैं
अता अस्लाफ़ का जज़्ब-ए-दरूँ कर
उक़ाबी रूह जब बेदार होती है जवानों में
ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को
सर-गुज़िश्त-ए-आदम
फ़िरदौस में 'रूमी' से ये कहता था 'सनाई'
की हक़ से फ़रिश्तों ने 'इक़बाल' की ग़म्माज़ी
तिरा जौहर है नूरी पाक है तू