ढूँडता फिरता हूँ मैं 'इक़बाल' अपने आप को
आप ही गोया मुसाफ़िर आप ही मंज़िल हूँ मैं
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न मोमिन है न मोमिन की अमीरी
ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को
परिंदे की फ़रियाद
नहीं इस खुली फ़ज़ा में कोई गोशा-ए-फ़राग़त
साक़ी-नामा
ख़िरद से राह-रौ रौशन-बसर है
ला-इलाहा-इल्लल्लाह
ला फिर इक बार वही बादा ओ जाम ऐ साक़ी
हर शय मुसाफ़िर हर चीज़ राही
अमीन-ए-राज़ है मर्दान-ए-हूर की दरवेशी
कभी हम से कभी ग़ैरों से शनासाई है
अज़ाब-ए-दानिश-ए-हाज़िर से बा-ख़बर हूँ मैं