बुतों से तुझ को उमीदें ख़ुदा से नौमीदी
मुझे बता तो सही और काफ़िरी क्या है
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नहीं तेरा नशेमन क़स्र-ए-सुल्तानी के गुम्बद पर
मता-ए-बे-बहा है दर्द-ओ-सोज़-ए-आरज़ूमंदी
कमाल-ए-जोश-ए-जुनूँ में रहा मैं गर्म-ए-तवाफ़
कमाल-ए-तर्क नहीं आब-ओ-गिल से महजूरी
मानिंद-ए-सहर सेहन-ए-गुलिस्ताँ में क़दम रख
तुझे याद क्या नहीं है मिरे दिल का वो ज़माना
ज़माम-ए-कार अगर मज़दूर के हाथों में हो फिर क्या
अच्छा है दिल के साथ रहे पासबान-ए-अक़्ल
तिरा जौहर है नूरी पाक है तू
जवानों को मिरी आह-ए-सहर दे
कभी हम से कभी ग़ैरों से शनासाई है
खो न जा इस सहर ओ शाम में ऐ साहिब-ए-होश