ख़ुदी की ख़ल्वतों में गुम रहा मैं
ख़ुदा के सामने गोया न था मैं
न देखा आँख उठा कर जल्वा-ए-दोस्त
क़यामत में तमाशा बन गया मैं
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करम तेरा कि बे-जौहर नहीं मैं
अता अस्लाफ़ का जज़्ब-ए-दरूँ कर
तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ
कभी ऐ हक़ीक़त-ए-मुंतज़र नज़र आ लिबास-ए-मजाज़ में
उसे सुब्ह-ए-अज़ल इंकार की जुरअत हुई क्यूँकर
यूँ तो सय्यद भी हो मिर्ज़ा भी हो अफ़्ग़ान भी हो
मिलेगा मंज़िल-ए-मक़्सूद का उसी को सुराग़
कमाल-ए-जोश-ए-जुनूँ में रहा मैं गर्म-ए-तवाफ़
हिन्दुस्तानी बच्चों का क़ौमी गीत
ख़ुदावंदा ये तेरे सादा-दिल बंदे किधर जाएँ
मुझे आह-ओ-फ़ुग़ान-ए-नीम-शब का फिर पयाम आया
आँख जो कुछ देखती है लब पे आ सकता नहीं