ख़ुदी की जल्वतों में मुस्तफ़ाई
ख़ुदी की ख़ल्वतों में किबरियाई
ज़मीन-ओ-आसमाँ ओ कुर्सी-ओ-अर्श
ख़ुदी की ज़द में है सारी ख़ुदाई
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ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले
एक सरमस्ती ओ हैरत है सरापा तारीक
तिरी दुनिया जहान-ए-मुर्ग़-ओ-माही
कभी तन्हाई-ए-कोह-ओ-दमन इश्क़
फ़ितरत को ख़िरद के रू-ब-रू कर
ज़ोहद और रिंदी
है याद मुझे नुक्ता-ए-सलमान-ए-ख़ुश-आहंग
जवाब-ए-शिकवा
न तख़्त-ओ-ताज में ने लश्कर-ओ-सिपाह में है
मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
ख़ुदाई एहतिमाम-ए-ख़ुश्क-ओ-तर है
तुझे याद क्या नहीं है मिरे दिल का वो ज़माना