ख़ुदाई एहतिमाम-ए-ख़ुश्क-ओ-तर है
ख़ुदा-वंदा ख़ुदाई दर्द-ए-सर है
व-लेकिन बंदगी असतग़फ़िरुल्लाह
ये दर्द-ए-सर नहीं दर्द-ए-जिगर है
Anwar Masood
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बातिल से दबने वाले ऐ आसमाँ नहीं हम
मोती समझ के शान-ए-करीमी ने चुन लिए
कोई देखे तो मेरी नय-नवाज़ी
मुझे रोकेगा तू ऐ नाख़ुदा क्या ग़र्क़ होने से
हवा हो ऐसी कि हिन्दोस्ताँ से ऐ 'इक़बाल'
मस्जिद तो बना दी शब भर में ईमाँ की हरारत वालों ने
तुलू-ए-इस्लाम
इश्क़ तिरी इंतिहा इश्क़ मिरी इंतिहा
ख़ुदावंदा ये तेरे सादा-दिल बंदे किधर जाएँ
दिल-ए-बेदार फ़ारूक़ी दिल-ए-बेदार कर्रारी
किसे ख़बर कि सफ़ीने डुबो चुकी कितने