ख़ुदा तुझे किसी तूफ़ाँ से आश्ना कर दे
कि तेरे बहर की मौजों में इज़्तिराब नहीं
तुझे किताब से मुमकिन नहीं फ़राग़ कि तू
किताब-ख़्वाँ है मगर साहिब-ए-किताब नहीं
Ahmad Faraz
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Gulzar
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मुसलमाँ के लहू में है सलीक़ा दिल-नवाज़ी का
तराना-ए-हिन्दी
कुशादा दस्त-ए-करम जब वो बे-नियाज़ करे
ख़िरद से राह-रौ रौशन-बसर है
रोज़-ए-हिसाब जब मिरा पेश हो दफ़्तर-ए-अमल
ये हूरयान-ए-फ़रंगी दिल ओ नज़र का हिजाब
निगह उलझी हुई रंग-ओ-बू में
बाग़-ए-बहिश्त से मुझे हुक्म-ए-सफ़र दिया था क्यूँ
न हो तुग़्यान-ए-मुश्ताक़ी तो मैं रहता नहीं बाक़ी
ये है ख़ुलासा-ए-इल्म-ए-क़लंदरी कि हयात
फ़ुनून-ए-लतीफ़ा
एक नौ-जवान के नाम