करम तेरा कि बे-जौहर नहीं में
ग़ुलाम-ए-तुग़रुल-ओ-संजर नहीं मैं
जहाँ बीनी मिरी फ़ितरत है लेकिन
किसी जमशेद का साग़र नहीं मैं
Gulzar
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मानिंद-ए-सहर सेहन-ए-गुलिस्ताँ में क़दम रख
इश्क़ तिरी इंतिहा इश्क़ मिरी इंतिहा
ख़ुदा तुझे किसी तूफ़ाँ से आश्ना कर दे
महीने वस्ल के घड़ियों की सूरत उड़ते जाते हैं
मुसलमाँ के लहू में है सलीक़ा दिल-नवाज़ी का
ग़ुलामी में न काम आती हैं शमशीरें न तदबीरें
दुनिया की महफ़िलों से उकता गया हूँ या रब
ख़ुदाई एहतिमाम-ए-ख़ुश्क-ओ-तर है
ज़लाम-ए-बहर में खो कर सँभल जा
तुलू-ए-इस्लाम
ये मेहर है बे-मेहरी-ए-सय्याद का पर्दा
जवानों को मिरी आह-ए-सहर दे