कभी तन्हाई-ए-कोह-ओ-दमन इश्क़
कभी सोज़-ओ-सुरूर-ओ-अंजुमन इश्क़
कभी सरमाया-ए-मेहराब-ओ-मिम्बर
कभी मौला-'अली' ख़ैबर-शिकन इश्क़
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दम-ए-आरिफ़ नसीम-ए-सुब्ह-दम है
भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी
हरम-ए-पाक भी अल्लाह भी क़ुरआन भी एक
मोहब्बत
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा
मरक़द का शबिस्ताँ भी उसे रास न आया
न हो तुग़्यान-ए-मुश्ताक़ी तो मैं रहता नहीं बाक़ी
ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को
ख़ुदी की शोख़ी ओ तुंदी में किब्र-ओ-नाज़ नहीं
मन की दौलत हाथ आती है तो फिर जाती नहीं
फ़ितरत मिरी मानिंद-ए-नसीम-ए-सहरी है
वही अस्ल-ए-मकान-ओ-ला-मकाँ है