आईन-ए-जवाँ-मर्दां हक़-गोई ओ बे-बाकी
अल्लाह के शेरों को आती नहीं रूबाही
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Gulzar
Habib Jalib
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Anwar Masood
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(8837) Peoples Rate This
ख़ुदी वो बहर है जिस का कोई किनारा नहीं
मकानी हूँ कि आज़ाद-ए-मकाँ हूँ?
मन की दौलत हाथ आती है तो फिर जाती नहीं
ये नुक्ता मैं ने सीखा बुल-हसन से
तिरा जौहर है नूरी पाक है तू
ख़िरद से राह-रौ रौशन-बसर है
पास था नाकामी-ए-सय्याद का ऐ हम-सफ़ीर
आज़ादी-ए-अफ़्कार से है उन की तबाही
यूँ तो सय्यद भी हो मिर्ज़ा भी हो अफ़्ग़ान भी हो
सर-गुज़िश्त-ए-आदम
ख़ुदी बुलंद थी उस ख़ूँ-गिरफ़्ता चीनी की
कभी आवारा ओ बे-ख़ानुमाँ इश्क़