जमाल-ए-इश्क़-ओ-मस्ती नय-नवाज़ी
जलाल-ए-इश्क़-ओ-मस्ती बे-नियाज़ी
कमाल-ए-इश्क़-ओ-मस्ती ज़र्फ़-ए-'हैदर'
ज़वाल-ए-इश्क़-ओ-मस्ती हर्फ़-ए-'राज़ी'
Jaun Eliya
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है राम के वजूद पे हिन्दोस्ताँ को नाज़
ऋषी के फ़ाक़ों से टूटा न बरहमन का तिलिस्म
नहीं मक़ाम की ख़ूगर तबीअत-ए-आज़ाद
यूँ हाथ नहीं आता वो गौहर-ए-यक-दाना
तुलू-ए-इस्लाम
गेसू-ए-ताबदार को और भी ताबदार कर
गुलज़ार-ए-हस्त-ओ-बूद न बेगाना-वार देख
कभी छोड़ी हुई मंज़िल भी याद आती है राही को
कभी हम से कभी ग़ैरों से शनासाई है
मैं जो सर-ब-सज्दा हुआ कभी तो ज़मीं से आने लगी सदा
फ़ितरत को ख़िरद के रू-ब-रू कर
जम्हूरियत इक तर्ज़-ए-हुकूमत है कि जिस में