इस राज़ को इक मर्द-ए-फ़रंगी ने किया फ़ाश
हर-चंद कि दाना इसे खोला नहीं करते
जम्हूरियत इक तर्ज़-ए-हुकूमत है कि जिस में
बंदों को गिना करते हैं तौला नहीं करते
Javed Akhtar
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Wasi Shah
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(6615) Peoples Rate This
तुझे किताब से मुमकिन नहीं फ़राग़ कि तू
अनोखी वज़्अ' है सारे ज़माने से निराले हैं
वो हर्फ़-ए-राज़ कि मुझ को सिखा गया है जुनूँ
ढूँड रहा है फ़रंग ऐश-ए-जहाँ का दवाम
गुलज़ार-ए-हस्त-ओ-बूद न बेगाना-वार देख
न समझोगे तो मिट जाओगे ऐ हिन्दोस्ताँ वालो
ला-इलाहा-इल्लल्लाह
निगाह-ए-इश्क़ दिल-ए-ज़िंदा की तलाश में है
ख़ुदी वो बहर है जिस का कोई किनारा नहीं
तू है मुहीत-ए-बे-कराँ मैं हूँ ज़रा सी आबजू
कमाल-ए-तर्क नहीं आब-ओ-गिल से महजूरी