तारिक़ की दुआ

(उंदुलुस के मैदान-ए-जंग में)

ये ग़ाज़ी ये तेरे पुर-असरार बंदे

जिन्हें तू ने बख़्शा है ज़ौक़-ए-ख़ुदाई

दो-नीम उन की ठोकर से सहरा ओ दरिया

सिमट कर पहाड़ उन की हैबत से राई

दो-आलम से करती है बेगाना दिल को

अजब चीज़ है लज़्ज़त-ए-आश्नाई

शहादत है मतलूब-ओ-मक़्सूद-ए-मोमिन

न माल-ए-ग़नीमत न किश्वर-कुशाई

ख़याबाँ में है मुंतज़िर लाला कब से

क़बा चाहिए उस को ख़ून-ए-अरब से

किया तू ने सहरा-नशीनों को यकता

ख़बर में नज़र में अज़ान-ए-सहर में

तलब जिस की सदियों से थी ज़िंदगी को

वो सोज़ उस ने पाया उन्हीं के जिगर में

कुशाद-ए-दर-ए-दिल समझते हैं उस को

हलाकत नहीं मौत उन की नज़र में

दिल-ए-मर्द-ए-मोमिन में फिर ज़िंदा कर दे

वो बिजली कि थी नारा-ए-ला-तज़र में

अज़ाएम को सीनों में बेदार कर दे

निगाह-ए-मुसलमाँ को तलवार कर दे

(7033) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Tariq Ki Dua In Hindi By Famous Poet Allama Iqbal. Tariq Ki Dua is written by Allama Iqbal. Complete Poem Tariq Ki Dua in Hindi by Allama Iqbal. Download free Tariq Ki Dua Poem for Youth in PDF. Tariq Ki Dua is a Poem on Inspiration for young students. Share Tariq Ki Dua with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.