फ़ितरत मिरी मानिंद-ए-नसीम-ए-सहरी है
रफ़्तार है मेरी कभी आहिस्ता कभी तेज़
पहनाता हूँ अतलस की क़बा लाला-ओ-गुल को
करता हूँ सर-ए-ख़ार को सोज़न की तरह तेज़
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आँख जो कुछ देखती है लब पे आ सकता नहीं
तू अभी रहगुज़र में है क़ैद-ए-मक़ाम से गुज़र
मजनूँ ने शहर छोड़ा तो सहरा भी छोड़ दे
निगाह-ए-फ़क़्र में शान-ए-सिकंदरी क्या है
मोहब्बत का जुनूँ बाक़ी नहीं है
तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ
दिल-ए-बेदार फ़ारूक़ी दिल-ए-बेदार कर्रारी
जिस खेत से दहक़ाँ को मयस्सर नहीं रोज़ी
न मोमिन है न मोमिन की अमीरी
तिरा जौहर है नूरी पाक है तू
गला तो घोंट दिया अहल-ए-मदरसा ने तिरा
जावेद के नाम