दम-ए-आरिफ़ नसीम-ए-सुब्ह-दम है
इसी से रेशा-ए-मअनी में नम है
अगर कोई शुऐब आए मयस्सर
शबानी से कलीमी दो क़दम है
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हया नहीं है ज़माने की आँख में बाक़ी
शिकवा
सबक़ मिला है ये मेराज-ए-मुस्तफ़ा से मुझे
हैं उक़्दा-कुशा ये ख़ार-ए-सहरा
मता-ए-बे-बहा है दर्द-ओ-सोज़-ए-आरज़ूमंदी
वतन की फ़िक्र कर नादाँ मुसीबत आने वाली है
आलम-ए-आब-ओ-ख़ाक-ओ-बाद सिर्र-ए-अयाँ है तू कि मैं
तिरी दुनिया जहान-ए-मुर्ग़-ओ-माही
ज़माना अक़्ल को समझा हुआ है मिशअल-ए-राह
समा सकता नहीं पहना-ए-फ़ितरत में मिरा सौदा
दिल सोज़ से ख़ाली है निगह पाक नहीं है
की हक़ से फ़रिश्तों ने 'इक़बाल' की ग़म्माज़ी