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हज़रात-ए-इंसाँ - अल्लामा इक़बाल कविता - Darsaal

हज़रात-ए-इंसाँ

जहाँ में दानिश ओ बीनिश की है किस दर्जा अर्ज़ानी

कोई शय छुप नहीं सकती कि ये आलम है नूरानी

कोई देखे तो है बारीक फ़ितरत का हिजाब इतना

नुमायाँ हैं फ़रिश्तों के तबस्सुम-हा-ए-पिन्हानी

ये दुनिया दावत-ए-दीदार है फ़रज़ंद-ए-आदम को

कि हर मस्तूर को बख़्शा गया है ज़ौक़-ए-उर्यानी

यही फ़रज़ंद-ए-आदम है कि जिस के अश्क-ए-ख़ूनीं से

किया है हज़रत-ए-यज़्दाँ ने दरियाओं को तूफ़ानी

फ़लक को क्या ख़बर ये ख़ाक-दाँ किस का नशेमन है

ग़रज़ अंजुम से है किस के शबिस्ताँ की निगहबानी

अगर मक़्सूद-ए-कुल मैं हूँ तो मुझ से मावरा क्या है

मिरे हंगामा-हा-ए-नौ-ब-नौ की इंतिहा क्या है

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