फ़ुनून-ए-लतीफ़ा
ऐ अहल-ए-नज़र ज़ौक़-ए-नज़र ख़ूब है लेकिन
जो शय की हक़ीक़त को न देखे वो नज़र क्या!
मक़्सूद-ए-हुनर सोज़-ए-हयात-ए-अबदी है
ये एक नफ़स या दो नफ़स मिस्ल-ए-शरर क्या!
जिस से दिल-ए-दरिया मुतलातिम नहीं होता
ऐ क़तरा-ए-नैसाँ वो सदफ़ क्या वो गुहर कया!
शायर की नवा हो कि मुग़न्नी का नफ़स हो
जिस से चमन अफ़्सुर्दा हो वो बाद-ए-सहर क्या!
बे-मोजज़ा दुनिया में अभरतीं नहीं क़ौमें
जो ज़र्ब-ए-कलीमी नहीं रखता वो हुनर क्या!
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