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तुझे याद क्या नहीं है मिरे दिल का वो ज़माना - अल्लामा इक़बाल कविता - Darsaal

तुझे याद क्या नहीं है मिरे दिल का वो ज़माना

तुझे याद क्या नहीं है मिरे दिल का वो ज़माना

वो अदब-गह-ए-मोहब्बत वो निगह का ताज़ियाना

ये बुतान-ए-अस्र-ए-हाज़िर कि बने हैं मदरसे में

न अदा-ए-काफ़िराना न तराश-ए-आज़राना

नहीं इस खुली फ़ज़ा में कोई गोशा-ए-फ़राग़त

ये जहाँ अजब जहाँ है न क़फ़स न आशियाना

रग-ए-ताक मुंतज़िर है तिरी बारिश-ए-करम की

कि अजम के मय-कदों में न रही मय-ए-मुग़ाना

मिरे हम-सफ़ीर इसे भी असर-ए-बहार समझे

उन्हें क्या ख़बर कि क्या है ये नवा-ए-आशिक़ाना

मिरे ख़ाक ओ ख़ूँ से तू ने ये जहाँ किया है पैदा

सिला-ए-शहीद क्या है तब-ओ-ताब-ए-जावेदाना

तिरी बंदा-परवरी से मिरे दिन गुज़र रहे हैं

न गिला है दोस्तों का न शिकायत-ए-ज़माना

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