ताज़ा फिर दानिश-ए-हाज़िर ने किया सेहर-ए-क़ादिम

ताज़ा फिर दानिश-ए-हाज़िर ने किया सेहर-ए-क़ादिम

गुज़र इस अहद में मुमकिन नहीं बे-चोब-ए-कलीम

अक़्ल अय्यार है सौ भेस बना लेती है

इश्क़ बेचारा न मुल्ला है न ज़ाहिद न हकीम

ऐश-ए-मंज़़िल है ग़रीबान-ए-मोहब्बत पे हराम

सब मुसाफ़िर हैं ब-ज़ाहिर नज़र आते हैं मुक़ीम

है गराँ-सैर ग़म-ए-राहीला-ओ-ज़ाद से तू

कोह ओ दरिया से गुज़र सकते हैं मानिंद-ए-नसीम

मर्द-ए-दरवेश का सरमाया है आज़ादी ओ मर्ग

है किसी और की ख़ातिर ये निसाब-ए-ज़र-ओ-सीम

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