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पूछ उस से कि मक़्बूल है फ़ितरत की गवाही - अल्लामा इक़बाल कविता - Darsaal

पूछ उस से कि मक़्बूल है फ़ितरत की गवाही

पूछ उस से कि मक़्बूल है फ़ितरत की गवाही

तू साहिब-ए-मंज़िल है कि भटका हुआ राही

काफ़िर है मुसलमाँ तो न शाही न फ़क़ीरी

मोमिन है तो करता है फ़क़ीरी में भी शाही

काफ़िर है तो शमशीर पे करता है भरोसा

मोमिन है तो बे-तेग़ भी लड़ता है सिपाही

काफ़िर है तो है ताबा-ए-तक़दीर मुसलमाँ

मोमिन है तो वो आप है तक़दीर-ए-इलाही

मैं ने तो किया पर्दा-ए-असरार को भी चाक

देरीना है तेरा मरज़-ए-कोर-निगाही

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