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ने मोहरा बाक़ी ने मोहरा-बाज़ी - अल्लामा इक़बाल कविता - Darsaal

ने मोहरा बाक़ी ने मोहरा-बाज़ी

ने मोहरा बाक़ी ने मोहरा-बाज़ी

जीता है 'रूमी' हारा है 'राज़ी'

रौशन है जाम-ए-जमशेद अब तक

शाही नहीं है ब-शीशा-बाज़ी

दिल है मुसलमाँ मेरा न तेरा

तू भी नमाज़ी मैं भी नमाज़ी

मैं जानता हूँ अंजाम उस का

जिस मारके में मुल्ला हों ग़ाज़ी

तुर्की भी शीरीं ताज़ी भी शीरीं

हर्फ़-ए-मोहब्बत तुर्की न ताज़ी

आज़र का पेशा ख़ारा-तराशी

कार-ए-ख़लीलाँ ख़ारा-गुदाज़ी

तू ज़िंदगी है पाएँदगी है

बाक़ी है जो कुछ सब ख़ाक-बाज़ी

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