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करेंगे अहल-ए-नज़र ताज़ा बस्तियाँ आबाद - अल्लामा इक़बाल कविता - Darsaal

करेंगे अहल-ए-नज़र ताज़ा बस्तियाँ आबाद

करेंगे अहल-ए-नज़र ताज़ा बस्तियाँ आबाद

मिरी निगाह नहीं सू-ए-कूफ़ा-ओ-बग़दाद

ये मदरसा ये जवाँ ये सुरूर ओ रानाई

इन्हीं के दम से है मय-ख़ाना-ए-फ़रंग आबाद

न फ़लसफ़ी से न मुल्ला से है ग़रज़ मुझ को

ये दिल की मौत वो अंदेशा ओ नज़र का फ़साद

फ़क़ीह-ए-शहर की तहक़ीर क्या मजाल मिरी

मगर ये बात कि मैं ढूँडता हूँ दिल की कुशाद

ख़रीद सकते हैं दुनिया में इशरत-ए-परवाज़

ख़ुदा की देन है सरमाया-ए-ग़म-ए-फ़रहाद

किए हैं फ़ाश रुमूज़-ए-क़लंदरी मैं ने

कि फ़िक्र-ए-मदरसा-ओ-ख़ानक़ाह हो आज़ाद

ऋषी के फ़ाक़ों से टूटा न बरहमन का तिलिस्म

असा न हो तो कलीमी है कार-ए-बे-बुनियाद

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