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हुआ न ज़ोर से उस के कोई गरेबाँ चाक - अल्लामा इक़बाल कविता - Darsaal

हुआ न ज़ोर से उस के कोई गरेबाँ चाक

हुआ न ज़ोर से उस के कोई गरेबाँ चाक

अगरचे मग़रबियों का जुनूँ भी था चालाक

मय-ए-यक़ीं से ज़मीर-ए-हयात है पुर-सोज़

नसीब-ए-मदरसा या रब ये आब-ए-आतिश-नाक

उरूज-ए-आदम-ए-ख़ाकी के मुंतज़िर हैं तमाम

ये कहकशाँ ये सितारे ये नील-गूँ अफ़्लाक

यही ज़माना-ए-हाज़िर की काएनात है क्या

दिमाग़ रौशन ओ दिल तीरा ओ निगह बेबाक

तू बे-बसर हो तो ये माना-ए-निगाह भी है

वगरना आग है मोमिन जहाँ ख़स ओ ख़ाशाक

ज़माना अक़्ल को समझा हुआ है मिशअल-ए-राह

किसे ख़बर कि जुनूँ भी है साहिब-ए-इदराक

जहाँ तमाम है मीरास मर्द-ए-मोमिन की

मिरे कलाम पे हुज्जत है नुक्ता-ए-लौलाक

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