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एजाज़ है किसी का या गर्दिश-ए-ज़माना - अल्लामा इक़बाल कविता - Darsaal

एजाज़ है किसी का या गर्दिश-ए-ज़माना

एजाज़ है किसी का या गर्दिश-ए-ज़माना

टूटा है एशिया में सेहर-ए-फ़िरंगियाना

तामीर-ए-आशियाँ से मैं ने ये राज़ पाया

अह्ल-ए-नवा के हक़ में बिजली है आशियाना

ये बंदगी ख़ुदाई वो बंदगी गदाई

या बंदा-ए-ख़ुदा बन या बंदा-ए-ज़माना

ग़ाफ़िल न हो ख़ुदी से कर अपनी पासबानी

शायद किसी हरम का तू भी है आस्ताना

ऐ ला इलाह के वारिस बाक़ी नहीं है तुझ में

गुफ़्तार-ए-दिलबराना किरदार-ए-क़ाहिराना

तेरी निगाह से दिल सीनों में काँपते थे

खोया गया है तेरा जज़्ब-ए-क़लंदराना

राज़-ए-हरम से शायद 'इक़बाल' बा-ख़बर है

हैं इस की गुफ़्तुगू के अंदाज़ महरमाना

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