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ढूँड रहा है फ़रंग ऐश-ए-जहाँ का दवाम - अल्लामा इक़बाल कविता - Darsaal

ढूँड रहा है फ़रंग ऐश-ए-जहाँ का दवाम

ढूँड रहा है फ़रंग ऐश-ए-जहाँ का दवाम

वा-ए-तमन्ना-ए-ख़ाम वा-ए-तमन्ना-ए-ख़ाम

पीर-ए-हरम ने कहा सुन के मेरी रूएदाद

पुख़्ता है तेरी फ़ुग़ाँ अब न इसे दिल में थाम

था अरेनी गो कलीम मैं अरेनी गो नहीं

उस को तक़ाज़ा रवा मुझ पे तक़ाज़ा हराम

गरचे है इफ़शा-ए-राज़ अहल-ए-नज़र की फ़ुग़ाँ

हो नहीं सकता कभी शेवा-ए-रिंदाना आम

हल्क़ा-ए-सूफ़ी में ज़िक्र बे-नम ओ बे-सोज़-ओ-साज़

मैं भी रहा तिश्ना-काम तू भी रहा तिश्ना-काम

इश्क़ तिरी इंतिहा इश्क़ मिरी इंतिहा

तू भी अभी ना-तमाम मैं भी अभी ना-तमाम

आह कि खोया गया तुझ से फ़क़ीरी का राज़

वर्ना है माल-ए-फ़क़ीर सल्तनत-ए-रूम-ओ-शाम

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